अपराधबोध से ग्रसित न रहें

1. दुनिया में कोई ऐसा इंसान नहीं है जिससे कभी कोई भूलचूक न होती हो, इसलिए किसी गलती पर खुद से नफरत करने लग जाना सही नहीं है.

2. यदि यह स्तिथि लगातार लम्बे समय तक बनी रहती है, तो हम तनाव और अवसाद से घिर जाते हैं, जिससे हमारा स्वास्थ्य और आत्मविश्वास डगमगा जाता है.

3. ऐसे में हमारा दिल और दिमाग एक अजीब कशमकश में घिर जाता है, जिससे हमें सारी चीजों से अरुचि या चिढ़ होने लगती है.

4. वस्तुस्तिथि पर आत्मविश्लेषण करना जरूरी है, क्योंकि हम कई बार दिमाग में आने वाले अवांछित डर व आशंकाओं को हम शब्दों की अभिव्यक्ति न दे पाने के कारण भी अपराधबोध में घिर जाते हैं.

5. सही समय पर "ना" कहने से, गुजरी बातें भूलने से, और अपने इर्दगिर्द के लोगों से हमेशा संवाद बनाए रखने से, भी हम अपराधबोध से स्वयं को मुक्त रख सकते हैं.

6. अपराधबोध से बचने के लिए, अपनी सीमाओं को पहचान कर ही लक्ष्य निर्धारित करें, और उनके भीतर ही जिम्मेदारियां लें.

कार्यान्वयन

1. कई लोग अपने लक्ष्यों को निपुणता से निर्धारित करते हैं.

2. वे उनकी प्राप्ति के लिए बढ़िया रणनीतियां भी बनाते हैं, लेकिन असफल रहते हैं.

3. ज्ञान होने के बावजूद, आप इसे अपने जीवन में लागू किए बिना सफल नहीं हो सकते.

4. इसके लिए, आपको दृढ़ निश्चय के साथ इसके प्रति निरन्तर प्रयास करना होगा.

5. अपने ज्ञान को व्यवहार में लाए बिना, किसी भी लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है.

क्या आप अपनी गलतियों के लिए बच्चों से क्षमा मांगते हैं?

1. कई अभिभावकों को लगता है कि बच्चों से माफी मांगने पर उनका सम्मान कम हो जाता है.

2. उन्हें यह भी लगता है कि बच्चे उनका मजाक उड़ा सकते हैं, या भविष्य में उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेंगे.

3. लेकिन तथ्य यह है कि बच्चे उन बड़ों का अधिक सम्मान करते हैं जो अपनी गलतियों को सहजता से स्वीकार करते हैं, बजाय इसके कि जो लोग मानते हैं कि बड़ों से कभी गलती नहीं होती.

4. अपनी गलती को जिम्मेदारी के साथ स्वीकार करने में किसी भी तरह की शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से आप अपने सीने का बोझ हल्का कर लेते हैं.

5. इसके अलावा, बच्चे यह भी सीखते हैं कि गलतियाँ किसी से भी हो सकती हैं, और उन्हें स्वीकार करने के बाद खुद को बेहतर बनाने पर ध्यान देना अधिक महत्वपूर्ण है.

6. ऐसा करने से, बड़ों और बच्चों के बीच आपसी विश्वास व प्यार भी बढ़ेगा और उनके रिश्ते मजबूत होंगे.

7. बच्चों को अपनी गलतियों के बारे में बताने के साथ-साथ यह भी बताएं कि आपके व्यवहार में क्या गलत था, क्योंकि यह उन्हें उन गलतियों को करने से रोकेगा.

8. अगर बच्चे आपके आचरण से हैरान और दुखी हुए हों, तो उन्हें यह भी कहें कि आप कोशिश करेंगे कि भविष्य में ऐसा फिर से नहीं होगा, और उन गलतियों को दोहराने से बचें.

बढ़ती उम्र में अपनी अड़ियल मानसिकता से बाहर निकलें

1. बढ़ती उम्र में जब कुछ खास करने को नहीं रह जाता है, तो खाली दिमाग परेशानी का सबब बन जाता है, और अवसाद एवं उच्च रक्तचाप जैसी गम्भीर बीमारियां पनपने लगती हैं.

2. अगर आप जरा शांति से बैठकर हिसाब लगाएंगे, तब आपको समझ आएगा कि आपके अधिकतर सपने पूरे हो चुके हैं, और जो बाकी हैं उनके पूरे न होने का दुख मात्र एक असुरक्षा की भावना है, जो उम्र के साथ बढ़ जाती है.

3. बढ़ती उम्र में निजी प्राथमिकताएं भी बदलती हैं, जिसके फलस्वरूप अधिकांश पति-पत्नी के बीच जो विवाद पैदा होता है, वह आप दोनों के अड़ियल रुख को बढ़ावा देता है और कुंठाएं पैदा करता है.

4. इसलिए, आप अपने को किसी काम में उलझाए रखें, कोई अच्छा शौक पालें, किताब-पत्रिकाएं पढ़ें, शौकिया भोजन बनाएं, बागवानी करें, मुफ्त में बच्चों को पढाएं या सिलाई-कढाई करें.

5. कोई आर्थिक समस्या नहीं है तो कम्प्यूटर या लैपटॉप खरीदें, उस पर टाइप करें, हिसाब-किताब रखें, बिजली-पानी और फोन आदि के बिल भी स्वयं ऑनलाइन जमा करें, पत्रव्यवहार करें, बधाई और शुभकामनाओं का लेन-देन करें, गाने सुनें और फ़िल्म देखें.

6. वक्त के साथ हमें अपनी सोच को सकारात्मकता की ओर ले जाना चाहिए, जिससे कि टूटने की बजाय खुद में इतनी क्षमता पैदा कर लेनी चाहिए कि हम बढ़ती उम्र की हर परिस्थिति का सामना कर सकें, और व्यर्थ की चिंताओं में स्वपीड़ा के अस्वस्थ सुख से अपने को दूर रखें.

खुश रहने की पहली शर्त सकारात्मक सोच है

 1. खुशी कहीं दूर नहीं हमारे आसपास ही रहती है, बस जरूरत है उसे महसूस करने और अपने दिल में जगह देने की होती है, इसलिए अपने इर्द-गिर्द मौजूद छोटी-छोटी चीजों में खुशी तलाशने की कोशिश करनी चाहिए.

2. खुशियों के लिए धन की जरूरत नहीं होती, परिस्थितियों से भी इनका कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि खुश रहने की पहली शर्त सकारात्मक सोच है और अच्छी सोच वालों की ओर खुशियां खुद दोस्ती का हाथ बढ़ाती हैं.

3. आशावादी नजरिया, संतोषजनक रिश्ते और सकारात्मक सोच जिंदगी में खुशहाली लाते हैं, इसलिए इन्हें जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बनाएं और अपने इर्द-गिर्द ऐसे लोगों को जगह दें जिनसे आप अपने मन की बात कह पाएं, जो आपको समझते हों और खामियों के साथ भी आपको स्वीकार करते हों.

4. फुर्सत में रहने वाले लोगों के मुकाबले व्यस्त लोग कम दुखी और उदास होते हैं, इसलिए अपने काम एवं शौक में हमेशा व्यस्त रहें, या जरूरतमंदों की मदद करें जिससे आत्मिक शांति, सुख और संतोष मिलता है.

5. यदि आप लिखने का शौक रखते हैं, तो वक्त-वक्त पर जिंदगी की सकारात्मक बातें अपनी डायरी में लिखते रहें, और जब भी मन उदास हो या नकारात्मक विचार मन में आएं तो उसके पन्ने पढ़ें जो आपको विश्वास दिलाएंगे कि जिंदगी में बुरे ही नहीं, अच्छे दिन भी आते हैं.

6. आप जैसे हैं उसी रूप में खुद को स्वीकार करें और दूसरों से अपनी तुलना कभी न करें, क्योंकि ऐसा करने से खुद से अपेक्षाएं बढ़ती हैं और पूरी न होने पर मन उदास होता है.

7. अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करें, क्योंकि उसे हासिल करने की कोशिश में दिनचर्या व्यवस्थित रहती है जिससे खुशी भी स्थाई भाव के रहती है.

8. यदि आप रोज सुबह उठने के बाद दो मिनट आंखें बन्द करें और मन ही मन बोलें कि यह दुनिया बेहद खूबसूरत है और मुझे उससे और खुद से प्यार है, तो नकारात्मक विचार स्वतः दूर हो जाएंगे.

बुजुर्गों का सदैव सम्मान करें

1. उन्हें परिवार के निर्णयों में शामिल करें.

2. उनकी मानसिक, शारीरिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य की देखभाल करें और पूर्ण सुविधा प्रदान करें.

3. उनकी ऊर्जा के अनुसार शैक्षिक, आध्यात्मिक एवं मनोरंजन के स्त्रोतों को अपनाने की पूर्ण सुविधा दें.

4. उनको मानसिक एवं शारीरिक शोषण से पूर्ण सुरक्षा प्रदान करें.

5. उन्हें अकेलेपन या अवसाद की स्तिथि से बचाएं.

6. उनकी बहुसंस्कृति जागरूकता पर ध्यान दें.

7. उन्हें अपनी जरूरतों के लिए स्वयं खर्च करने की आर्थिक स्वतंत्रता दें.

8. नई स्फूर्ति प्रदान करने के लिए, आप उन्हें अपने समाज में भी प्रमुखता दें.

9. जहां बुद्धि एवं सोच की आवश्यकता हो, वहां उन्हें अधिमान्यता दें.

10. उनके अधिकारों का कभी भी हनन न होने दें और कड़ी कार्यवाही करें.

परवरिश में समझदारी जरूरी है

1. घर से बाहर, आपके बच्चे दूसरों के सामने अपनी राय रखना, अपने हितों को पहचानना, और अपनी मनपसंद चीजों के लिए संघर्ष करना भी सीखते हैं, जो उनके विकास की प्रक्रिया का एक स्वाभाविक हिस्सा है.

2. लेकिन उनके हर व्यवहार पर अभिभावकों को पूरी नजर रखनी चाहिए, अन्यथा बच्चों की आदतें बिगड़ने लगती हैं और कुछ समय के बाद उनके गलत व्यवहार को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है.

3. बच्चों की बाल-सुलभ शरारतों और उनके अनुशासनहीन व्यवहार में एक बारीक फर्क होता है, और उनके किसी असामाजिक व्यवहार को तुरंत रोकना बहुत जरुरी है, अन्यथा भविष्य में यह आदत उनके लिए बहुत नुकसानदेह साबित होगी.

4. चार साल की उम्र से ही बच्चों को सामाजिक संबंधों से जुड़े विभिन्न पहलुओं को सिखाना सबसे ज्यादा जरूरी है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, और अगर उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार हुआ तो उन्हें कैसा लगेगा.

5. बच्चे अपने अभिभावकों से ही सीखते हैं, इसलिए आपको भी अपने व्यवहार में शालीनता और संयम बरतना चाहिए जिससे उनमें कोई मनोवैज्ञानिक समस्याएं नहीं पनपें.

6. आपको रोजमर्रा के व्यवहार से बच्चों को यह एहसास दिलाना भी जरूरी है, कि हर चीज केवल उनके लिए ही नहीं है बल्कि उन्हें दूसरों के साथ मिलबांट कर इस्तेमाल करना है, जिससे कि वे दूसरों की भावनाओं और जरूरतों का ख्याल रखना सीखेंगे.

एक सफल आजीविका के लिए व्यक्तित्व की खूबियों पर भी काम करें

1. किसी भी क्षेत्र के लिए जरूरी योग्यताएं उस क्षेत्र में आजीविका बनाने का रास्ता तैयार करती हैं.

2. परंतु एक स्तर के बाद आपके व्यक्तित्व की खासियतें, जैसे रचनात्मक सोच, सकारात्मकता, बातचीत की कला आदि काम आते हैं.

3. असल में किसी आजीविका का चुनाव और उसमे सफलता आपकी अपनी विचार-प्रक्रिया पर भी काफी हद तक निर्भर करती है.

4. इसलिए, आजीविका का चुनाव करने से पहले सारे पहलुओं पर सही तरीके से सोच-विचार करें कि हमें क्या करना है.

5. आजीविका का चुनाव करते वक्त उस क्षेत्र में रोजगार के मौकों को ध्यान में रखें, उसमे कितनी आमदनी है, जॉब सिक्योरिटी कैसी है, और आप उसमे कितने फिट हो पाएंगे.

6. इसके बाद अपनी पढ़ाई के साथ-साथ बुनियादी चीजों पर भी काम करते रहें.

अपने बॉस के अशिष्ट व्यवहार से कैसे निपटें

1. हमेशा अपने कार्य समय और उसके परिणामों के बारे में अद्यतन करते रहें, और आपके काम से उत्पन्न प्रभाव को ठीक से परियोजित करें.

2. यह न सोचें कि आपकी समूह में जरूरत नहीं है, बल्कि यह समझने की कोशिश करें कि आपके बॉस के अशिष्ट व्यवहार के पीछे असली कारण क्या है.

3. अपने बॉस का यह पता लगाने के लिए निरीक्षण करें कि क्या वे केवल आपके साथ ही इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं या यह उनका सामान्य व्यवहार है.

4. अगर यह उनका सामान्य व्यवहार है, तो उसके अनुसार काम करें, और सीधे उनसे ही अपने प्रदर्शन के बारे में प्रतिक्रिया लें.

5. आपको उनसे संवाद के हर तरीके भी खुले रखने चाहिए, और अपनी आलोचना के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए.

6. अगर समस्या गंभीर हो, तो अन्य अधिकारियों के सामने अपने दृष्टिकोण को सामने रखने के लिए, आपको अपनी कंपनी द्वारा दिए गए प्रतिपुष्टि तंत्र, जैसे सहायता डेस्क, कर्मचारी संतुष्टि सर्वेक्षण, स्तरीय बैठकें, प्रतिपुष्टि सत्र, इत्यादि का भी उचित उपयोग करना चाहिए.

जिम्मेदारी

1. जब भी कोई ऐसा कार्य आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है, तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो उसे कर ही देगा.

2. हमारी इसी सोच की वजह से, स्तिथियाँ वैसी की वैसी बनी रहती हैं.

3. अगर हम दूसरों की परवाह किए बिना, अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जाएं, तो हम ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी सारे लोगों को जरूरत है.

समय

1. समय अनंत है.

2. इसलिए, इसकी न तो शुरुआत है और न ही अंत.

3. समय मुझमें है, मैं समय में नहीं.

4. समय इस प्रकृति के भीतर हमारी सोच का मार्ग है.

5. समय के प्रति हमारा कर्तव्य करना सबसे अच्छा तरीका है.

सोच

1. सोच सतह पर उठने वाले बुलबुले की तरह है; उसके बाद शब्द आता है, शब्द के बाद रूप होता है, और हम अच्छे और बुरे विचार के उत्तराधिकारी होते हैं.

2. हम वही हैं जो हमारे विचारों ने हमें बनाया है, इसलिए आप जो सोचते हैं उसका ध्यान रखें; अगर आपको सोचना है, तो अच्छे विचारों, महान विचारों के बारे में सोचें, क्योंकि हम जो सोचते हैं वो हम बन जाते हैं.

3. अंतर विचार का पहला संकेत है, और हर नए विचार को विरोध पैदा करना चाहिए; जब विचार में यह भिन्नता रखी जाती है, तो हमें उस विविधता के कारण झगड़ा नहीं करना चाहिए.

4. विचार को निर्देशित और नियंत्रित किया जा सकता है; हमारे विचार चीजों को सुंदर बनाते हैं, हमारे विचार ही चीजों को बदसूरत बनाते हैं.

5. यदि हम दूसरों का कम से कम अच्छा भी सोचना शुरू करें, तो यह सोच धीरे-धीरे दिल में एक शेर की ताकत पैदा करता है; भविष्य में हम जो कुछ भी करेंगे, वह वही होगा जो हम सोचते और करते हैं.

क्या आप पढ़ाई के लिए विदेश जा रहे हैं?

1. अपनी कक्षाओं से लेकर परीक्षा तक की पूरी अनुसूची के लिए एक योजना बनाएं, और प्रत्येक विषय का अध्ययन कितने समय तक करना है इसके लिए समय सारिणी बनाएं, जो आपके अध्ययन की एकाग्रता में मदद करेगा.

2. यह आपको अपनी पढ़ाई और सामाजिक जीवन के बीच तालमेल बिठाने के कारण होने वाले तनाव से भी बचाएगा.

3. अपने प्रोफेसरों या साथी सहपाठियों से सभी प्रश्न तुरंत पूछें, क्योंकि आपकी हिचकिचाहट का आपकी पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

4. कॉलेज के अध्ययन समूहों का हिस्सा बनें, जो आपको क्लास में अध्ययन किए गए विषयों को आसानी से समझने में सक्षम करेगा, और आपको अन्य सहयोगियों से नोट्स लेने में भी मदद करेगा.

5. पिछले वर्षों की परीक्षाओं के प्रश्न पत्रों को हल करने की आदत डालें, जो न केवल आपकी पढ़ाई की प्रगति जानने में मदद करेगा, बल्कि आपको उस पैटर्न को जानने में भी मदद करेगा जिसमें वहाँ प्रश्न पूछे जाते हैं.

दफ्तर में कई वरिष्ठ अधिकारियों को एक साथ कैसे संभालें?

1. दफ्तर के ऐसे वातावरण में उन सभी के वरिष्ठता क्रम के बारे में सही जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है, जिसके माध्यम से उनके साथ तालमेल रखना आसान हो जाता है जो आपके काम से जुड़े अंतिम निर्णय लेते हैं.

2. सबसे पहले उनकी पसंद-नापसंद एवं अपेक्षाएं जानें, और उनसे कंपनी की भावी योजनाओं के बारे में बात करें.

3. उन्हें कार्यालय में अपनी जिम्मेदारियों के बारे में और आप उन्हें कैसे संभालते हैं, इसकी पूरी जानकारी दें.

4. इससे उन्हें आपकी रूपरेखा और कार्यभार का अंदाज़ा हो जाएगा, ताकि वे आपके अनुरूप कार्य या जिम्मेदारी सौंप सकें.

5. हर महीने अपने काम की अनुसूची बनाएं और इसे रोजाना अपडेट करें, जिससे उन सभी को आपके समय प्रबंधन कौशल के बारे में भी जानकारी मिल जाएगी.

6. अपनी प्रगति से उन्हें अवगत कराने के लिए, आपको एक नियमित समूह बैठक का आयोजन करना चाहिए, जिसमें आप उन सभी से एक साथ अन्य नए कार्यों के लिए अनुमोदन भी ले सकते हैं.

7. चूंकि ऐसे वातावरण में गलतियों की संभावना अधिक होती है, इसलिए हमेशा समस्याओं का प्रभावी समाधान ढूंढते रहें, ताकि आपके वरिष्ठों को इस संबंध में आपकी क्षमता का एहसास रहे.