संतुष्टि

1. जब भी कोई मनुष्य अपने किए गए कर्मों से संतुष्ट हो जाता है, वह उस पर नए प्रयोग नहीं करता.

2. तब वह एक स्थान पर पहुंचने के बाद स्थिर हो जाता है और वहां से ऊपर नहीं जा पाता.

3. इसके फलस्वरूप, उसके पतन का मार्ग आरम्भ हो जाता है.