1. अपने बच्चे के भावनात्मक कार्यों के प्रति उसकी प्राथमिकताएं निर्धारित करने में हमेशा व्यावहारिक रहें, उसकी रुचियों-अभिरुचियों को पहचानें और इस संबंध में बिना कोई बोझ लादे उससे खुलकर बातचीत करें.
2. इसके लिए जरूरी है कि एक कैलेंडर या कागज पर उसके किए जाने वाले कार्य के समय और तारीख अंकित किया जाए और उसे अपनी क्षमताओं के अनुकूल अपना निर्णय स्वयं लेने दें.
3. बच्चे द्वारा चेहरे पर चिंता के भाव आना उसके तानावग्रस्त होने के पूर्व संकेत हो सकते हैं, जो एक सहज स्वाभाविक प्रक्रिया है, ऐसे में उसकी समस्या को ध्यान से सुनें.
4. अधिकतर बच्चे अपनी समस्याओं का समाधान तुरंत चाहते हैं, इसलिए उसे तनाव की स्तिथि में किस प्रकार संयम बरतना है, सिखाएं तथा इस तरह की मनोस्तिथि में उसे धैर्य बंधाएं और जीवन की कठिनाइयों के विषय में समझाएं.
5. प्रायः अभिभावक बच्चों के प्रेरणास्रोत होते हैं, इसलिए आप स्वयं तनाव की स्तिथियों से निकलने के लिए अपने स्तर पर क्या-क्या प्रयास करते हैं, बच्चे को इस बारे में बताकर आप उसके तनाव को हल्का कर सकते हैं.
6. आपके अपने ही उदाहरण द्वारा पेश किया गया किसी समस्या का समाधान बच्चे में नए आत्मविश्वास का संचार करेगा.