1. जब बच्चों की उम्र बढ़ने लगती है, तो वे दुनिया को अपनी ही नज़र से देखते हैं और उनकी अपनी एक सोच विकसित होने लगती है, जिसके फलस्वरूप हो सकता है कि वे अपने माता-पिता के विचारों से सहमत न हों, और अभिभावकों व बच्चों के बीच विचारों का मतभेद और खींचातानी शुरू हो जाए, जिन्हें संभालना इतना भी आसान नहीं होता.
2. इस स्तिथि में अक्सर अभिभावक अपना आपा खो देते हैं, जबकि यहां यह जरूरी है कि वे थोड़ा समझदारी का परिचय दें और अपने मतभेद दूर करें.
3. अक्सर ऐसी समस्याओं का समाधान इसलिए भी नहीं निकल पाता क्योंकि अभिभावक बच्चों की बात सुनने से पहले ही अपने निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं, और वहीं दूसरी ओर जब बच्चों को इस चीज का आभास होता है, तब वे और भी ज्यादा लापरवाह हो जाते हैं और फिर वे सिर्फ अपने मन की ही करते हैं.
4. इस प्रवित्ति को दूर करने के लिए अभिभावकों को पहले बच्चों की बात, बिना रोक-टोक के, ध्यानपूर्वक सुनते हुए उनके पक्ष को समझने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से आप उनकी बात तो समझेंगे ही, साथ ही जब आप अपनी बात उन्हें समझाएंगे तो वे भी आपकी बात को ध्यानपूर्वक सुनेंगे.
5. चूंकि बच्चे अपनी उम्र व अनुभव के आधार पर सोचते हैं, यह हो सकता है कि उनके द्वारा लिया गया फैसला या मत सही न हो, इसलिए उन्हें सीधा ना कहने से बुरा लग सकता है और फिर वे कभी भी आपकी बात को समझने की कोशिश नहीं करेंगे.
6. ऐसे में हमेशा एक बीच का रास्ता निकालने का प्रयास करें, और आपका समाधान कुछ ऐसा हो जिसमे किशोर बच्चों की मर्जी भी शामिल हो और आप भी अपना तर्क उनको समझा पाएं.