इच्छा

1. मनुष्य की इच्छाओं की कोई सीमा नहीं है; वह इच्छा करता है और जब वह उस बिंदु पर आता है जहां इच्छा पूरी नहीं हो सकती है, तो परिणाम दर्द होता है।

2. इच्छा बिना शुरुआत के है, अनंत है, इसकी पूर्ति सीमित है, और यह तब तक नहीं आएगी जब तक कि इसे पूरा करने के लिए बाहर कुछ न हो।

3. इच्छा की संतुष्टि केवल इसे बढ़ाती है, जैसे तेल आग पर डाला जाता है, लेकिन यह अधिक भयंकर रूप से जला देती है।

4. हमारी इच्छाएँ भी लगातार बदलती रहती हैं - हम आज जिसे पुरस्कार मानते हैं, उसे हम कल अस्वीकार कर देते हैं - और यही हमें इच्छाओं का गुलाम बनने के लिए बाध्य करता है।

5. इच्छा, चाहत, सभी दुखों की जनक है, और जब हम किसी चीज की आशा करते हैं, तभी यह हम पर शासन करती है।

6. एक "इच्छाहीन" ही शानदार परिणाम लाता है।

संस्कृति

1. यह संस्कृति ही है जो झटकों का सामना कर सकती है, ज्ञान का एक साधारण द्रव्यमान नहीं.

2. यह आध्यात्मिक संस्कृति और नैतिक संस्कृति है जो गलत नस्लीय प्रवृत्ति को बेहतर के लिए बदल सकती है।

3. रक्त में संस्कृति आनी चाहिए।

4. जीव जितना उत्कृष्ट होगा, संस्कृति उतनी ही उच्च होगी।

दान

1. हाथ हमेशा देने के लिए बनाया गया था, और दान कभी विफल नहीं होता है।

2. सब कुछ का परीक्षण करें, सब कुछ करने की कोशिश करें, और फिर उस पर विश्वास करें, और यदि आप इसे कई लोगों की भलाई के लिए पाते हैं, तो इसे सभी को दें।

3. दान से बड़ा कोई पुण्य नहीं है।

4. बहुतों की भलाई के लिए, कई लोगों की खुशी के लिए, महापुरुष अपना जन्म लेते हैं।

चरित्र

 1. यह चरित्र है जो कठिनाइयों की प्रबल दीवारों के माध्यम से अपना रास्ता बनाता है, और यह महान संघर्ष के माध्यम से निर्मित होता है।

2. चरित्र आदतों की पुनरावृत्ति है, और बार-बार की जाने वाली आदतें ही चरित्र में सुधार ला सकती हैं।

3. चरित्र एक हजार ठोकर के माध्यम से खुद को स्थापित करता है, और यह अकेला चरित्र है जो हर जगह भुगतान करता है।

4. जब दिल कभी प्रतिक्रिया नहीं करता है, तब यही चरित्र बनाता है।

एकाग्रता और अनासक्ति

1. एकाग्रता की शक्ति ही ज्ञान के खजाने की एकमात्र कुंजी है।

2. एकाग्रता सभी ज्ञान का सार है।

3. एकाग्रता के विकास के साथ-साथ, हमें अनासक्ति की शक्ति विकसित करनी चाहिए।

4. लगभग हमारी सारी पीड़ा अनासक्ति की शक्ति न होने के कारण होती है।

5. हमारे जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब हमें लगता है कि हमारा खेल समाप्त हो गया है, लेकिन फल पेड़ से तभी गिरता है जब वह पक जाता है।

6. उसके पास वह सब कुछ आता है, जो किसी चीज की परवाह नहीं करता है।

आसक्ति

1. आसक्ति वही आती है जहाँ हम बदले में कुछ की उम्मीद करते हैं।

2. जो कुछ भी आप मजबूरी के तहत करते हैं वह आसक्ति का निर्माण करने के लिए जाता है।

3. जैसे ही हम अपने द्वारा किए गए कार्य से अपनी पहचान करते हैं, सभी दुख और दर्द इसके प्रति लगाव से आते हैं।

4. हमारा दुख काम से नहीं, बल्कि किसी चीज से जुड़ने से होता है।

5. यदि आप किसी एक चीज से अपने लगाव से छुटकारा पा सकते हैं, तो आप मुक्ति के रास्ते पर हैं।

गैर-जरूरी खबरें आपको बीमार भी कर सकती हैं

 1. यह सच है कि हमारे पास जितनी ज्यादा सूचनाएं होती हैं, हम उतने ही होशियार समझे जाते हैं, लेकिन लोगों की इसी कमजोर नस का फायदा उठाते हुए ऐसी कई वेबसाईट हैं जो बेमतलब की खबरें चौबीसों घंटे परोसती रहती हैं.

2. आप इनके चंगुल में फंसकर अंत में निराशा से अपना सिर पकड़ लेते हैं, जबकि इन्हें जरा भी परवाह नहीं है कि आपके मनोवैज्ञानिक कौतूहल का दोहन आपके मन को कसैला कर आपको बीमार भी कर सकता है.

3. वेबसाइटों को आपको अपनी खबर तक लाना है तो वे किसी भी बात पर इतना नमक-मिर्च लगा देंगे कि भले उसमे सच्चाई लेशमात्र भी न रह जाए, मगर उन्हें फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उन्हें तो बस आपको अपने आर्थिक फायदे के लिए आकर्षित कर फंसाना भर है.

4. यह एक बहुत खतरनाक प्रवृति है जो आपके मन में गुस्सा और खुद को ठगा महसूस कराती है, और अगर आपने जल्दी से सयंम में रहना नहीं सीखा तो ऐसा बार-बार ठगा जाना आपको बीमार कर सकता है.

5. सामयिक रहने के नाम पर या हर जानकारी जानने की उत्कंठा आजकल बीमार किए जाने का साधन बन चुकी है, क्योंकि हर कोई हमें अपने बारे में सब कुछ जानकारी देने के लिए बेचैन नजर आता है, और हमें लगता है कि हम अगर उनसे अनजान रह गए तो मानो पहाड़ टूट जाएगा और हमारे ये जीना मुश्किल हो जाएगा.

6. इसलिए यह जरूरी है कि हम इसके बारे में निरंतर जागरूक रहें और इस सनसनी के जाल में फंस कर अपनी मानसिकता खराब न होने दें.

अहंकार और विनम्रता

1. हमारे मन में कभी भी सच्चाई नहीं आएगी, जब तक अहंकार की धुंधली छाया भी बनी रहती है।

2. सर्वोच्च पद प्राप्त करने के बाद भी हमें अहंकार से दूर रहकर विनम्र रहना चाहिए।

3. हम विनम्रता से सभी का दिल जीत सकते हैं।

4. विनम्रता से हम अपने शत्रुओं को भी अपना बना सकते हैं।

5. इसलिए, इस दुष्ट अहंकार को हमें तिरस्कृत करना ही होगा।

क्या आपको नौकरी के दौरान तनाव से संबंधित समस्याएं हैं?

1. व्यक्तिगत, घरेलू और कार्य संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों के मिश्रण को अलग करना मुश्किल है, जिनके फलस्वरूप किसी की चिंताजनक स्थिति हो सकती है और उन्हें कार्यस्थल में भी समस्या हो सकती है.

2. सामान्य तनाव संबंधी बीमारियां हैं: मनोवैज्ञानिक चिंता, शारीरिक तनाव, अवसाद, अनिद्रा और माइग्रेन, और तनाव-संबंधी स्थितियां अक्सर काम में बदलाव के बाद आ सकती हैं, और जैसे-जैसे लोग बड़े होते जाते हैं, प्रौद्योगिकी में बदलाव और नई चीजें सीखना उनके के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, जिससे तनाव बढ़ सकता है.

3. प्रारंभ में, तनाव के कारण लोग अधिक चिड़चिड़े हो जाते हैं या बस असामान्य रूप से व्यवहार करते हैं, लेकिन इसके साथ ही, वे गंभीर चिंता विकसित कर सकते हैं और काम की स्थितियों के बारे में भयभीत हो सकते हैं, जो अवसाद के साथ लंबे समय तक काम बंद होने के कगार पर आ सकता है.

4. इस बारे में ऐसे सोचें कि क्या आपकी प्रतिक्रियाएं यथार्थवादी हैं क्योंकि  किसी स्थिति के बारे में लोगों की अपनी धारणा से बहुत तनाव होता है, लेकिन ये भावनाएं वास्तव में निराधार हो सकती हैं.

5. इसलिए अपने मैनेजर और सहकर्मियों के साथ निरंतर संचार पर काम करें - अक्सर, तनाव गलतफहमी से भी आ सकता है - और उनके साथ अपने कार्यभार की योजना बनाएं.

क्या आप सामाजिक माध्यमों (सोशल मीडिया) में व्यस्त हैं?

 1. यदि आप अपनी मानसिक सेहत दुरुस्त रखना चाहते हैं, तो सामाजिक माध्यमों (सोशल मीडिया) पर निश्चित समय से ज्यादा सक्रिय न रहें, और इनमें अधिक से अधिक प्रतिदिन 30 मिनट तक का ही समय गुजारें.

2. ऐसा संयम रखना इसलिए जरूरी है क्योंकि सामाजिक स्थलों (सोशल साइट्स) के बढ़ते जुनून के कारण आप झूठी जिंदगी जीने के प्रति अग्रसर होने लगते हैं और आपकी मानसिक सहनशक्ति घटने लगती है.

3. हकीकत यह है कि लोग अपने दुख, तकलीफ, तनाव या परेशानी भरे लम्हों को न के बराबर साझा करते हैं क्योंकि वे केवल अपनी जिंदगी के बेहतर पहलू को ही बड़े चाव से दिखाना चाहते हैं, जिनको निरंतर देखते हुए अवसाद या हीन भावना के शिकार बनने की शुरुआत होने का खतरा रहता है.

4. न चाहते हुए भी हम सामाजिक माध्यमों पर प्रदर्शित दूसरों की खुशहाल जिंदगी से अपनी जिंदगी की तुलना करने लगते हैं और अंदर ही अंदर तनाव, एकाकीपन और घुटन महसूस करने लगते हैं, लेकिन जब दूसरों के साथ कुछ साझा करने की हो तो खुद भी केवल अपनी जिंदगी के खुशनुमा पल को ही बांटते हैं.

5. यही अंतर्द्वंद कहीं न कहीं हमें मानसिक रूप से कमजोर बनाने लगता है क्योंकि हम भूल जाते हैं कि दुख और परेशानी सबकी जिंदगी में होते हैं.

सफलता क्या है?

 1. हर किसी की सफलता की परिभाषा दूसरों से भिन्न है, इसलिए हर किसी की सफलता की व्याख्या भी अलग होती है.

2. कुछ के लिए यह मन की एक अवस्था है, कुछ के लिए भौतिक सुख, तो कुछ के लिए एक निश्चित पद को पाना, और कुछ के लिए समाज में कुछ बड़ा कर नाम और शोहरत पाना.

3. सफलता कभी पूर्ण नहीं होती, बल्कि यह सापेक्ष होती है; यह सिर्फ एक अल्पविराम है, पूर्णविराम नहीं, और यह अंत न होकर जीवन की यात्रा का सिर्फ एक मोड़ है और इससे कभी संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता.

4. असल में सफलता हमेशा बेहतर करने और आगे बढ़ने का संदेश देती है, और जीवन में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जो अपनी सफलता से संतुष्ट हो, चाहे वह शीर्ष राजनीतिज्ञ या नामचीन व्यक्ति हो या एक सफल खिलाड़ी हो.

5. सफल होने के लिए व्यक्ति को कई अच्छी चीजों का बलिदान करना पड़ता है और अपने जीवन का उद्देश्य समझना पड़ता है, जिनको पाने के प्रयासों में लग जाना पड़ता है, लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं होता.

6. कभी भी दूसरों को देखकर अपने जीवन के बारे में निर्णय न लें, खुद तय करें और अपने प्रति ईमानदार रहते हुए कभी खुद को धोखा देने का प्रयास न करें.

7. योजना के आभाव में कई अच्छी प्रतिभाओं को बीच भंवर में भटकते हुए देखा जाता है क्योंकि वे अपनी प्रतिभा को पहचान नहीं सके और उसके साथ न्याय नहीं कर पाए.

8. इस कारण से वे खुद को भूलकर दूसरों के साथ स्पर्धा में लग गए, जबकि कला की सभी शाखाओं में सफलता बहुत हद तक व्यक्तिगत पहल और सही कोशिश पर निर्भर करती है.

किशोरावस्था वाले बच्चों को कैसे संभालें?

 1. जब बच्चों की उम्र बढ़ने लगती है, तो वे दुनिया को अपनी ही नज़र से देखते हैं और उनकी अपनी एक सोच विकसित होने लगती है, जिसके फलस्वरूप हो सकता है कि वे अपने माता-पिता के विचारों से सहमत न हों, और अभिभावकों व बच्चों के बीच विचारों का मतभेद और खींचातानी शुरू हो जाए, जिन्हें संभालना इतना भी आसान नहीं होता.

2. इस स्तिथि में अक्सर अभिभावक अपना आपा खो देते हैं, जबकि यहां यह जरूरी है कि वे थोड़ा समझदारी का परिचय दें और अपने मतभेद दूर करें.

3. अक्सर ऐसी समस्याओं का समाधान इसलिए भी नहीं निकल पाता क्योंकि अभिभावक बच्चों की बात सुनने से पहले ही अपने निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं, और वहीं दूसरी ओर जब बच्चों को इस चीज का आभास होता है, तब वे और भी ज्यादा लापरवाह हो जाते हैं और फिर वे सिर्फ अपने मन की ही करते हैं.

4. इस प्रवित्ति को दूर करने के लिए अभिभावकों को पहले बच्चों की बात, बिना रोक-टोक के, ध्यानपूर्वक सुनते हुए उनके पक्ष को समझने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से आप उनकी बात तो समझेंगे ही, साथ ही जब आप अपनी बात उन्हें समझाएंगे तो वे भी आपकी बात को ध्यानपूर्वक सुनेंगे.

5. चूंकि बच्चे अपनी उम्र व अनुभव के आधार पर सोचते हैं, यह हो सकता है कि उनके द्वारा लिया गया फैसला या मत सही न हो, इसलिए उन्हें सीधा ना कहने से बुरा लग सकता है और फिर वे कभी भी आपकी बात को समझने की कोशिश नहीं करेंगे.

6. ऐसे में हमेशा एक बीच का रास्ता निकालने का प्रयास करें, और आपका समाधान कुछ ऐसा हो जिसमे किशोर बच्चों की मर्जी भी शामिल हो और आप भी अपना तर्क उनको समझा पाएं.

अपने वानप्रस्थ आश्रम को नए परिपेक्ष में कैसे ढालें?

अपने वानप्रस्थ आश्रम को नए परिपेक्ष में कैसे ढालें?

1. बिना किसी पर निर्भर हुए, अपने सारे कार्य स्वयं करने की आदत डालें.

2. जो पूर्व में की हुई बचत है, उसे अपने हाथ में ही रखें.

3. जीवन में जो मिला है, उसके प्रति हृदय में एक स्वीकार भाव रखें.

4. अपनों और दूसरों के जीवन में व्यर्थ हस्तक्षेप न करें, और अपने जीवन से मतलब रखें.

5. अपनी दिनचर्या को पूर्णतः व्यवस्थित कर लें, जिससे कि आपके पास किसी फालतू बात या सोच के लिए समय ही न बचे.

चिंता केवल चिता की तरफ ले जाती है

1. जीवन में समस्याओं को आने से रोका नहीं जा सकता.

2. यही हमारी चुनौतियां होती हैं, और इन्हें सुलझाकर हम अपना ही आत्मिक विकास बढाते हैं.

3. वास्तव में हर नई समस्या हमें पहले से अधिक समझदार बनाती है.

4. जब भी जीवन में कोई समस्या आए, तो ठंडे दिमाग से सोचें कि उससे पार पाने के लिए क्या उपाय किया जा सकता है?

5. कभी भी मन में चिंताओं को न बढ़ने दें, क्योंकि वे केवल चिता की तरफ ले जाती हैं और कोई समाधान नहीं देतीं.

डर को कैसे भगाएं?

1. खुद से सवाल करें कि वास्तव में आपको किस बात से डर लग रहा है.

2. फिर सोचें कि इस डर की असली वजह क्या है.

3. इसके बाद, उस डर के बारे में सकारात्मक कल्पना करें.

4. अगर आपको तैरने से डर लगता है, तो कल्पना करें कि आप नदी में खुशी-खुशी तैर रहें हैं.

5. अगर आपको किसी से बिछड़ जाने का डर लगता है, तो कल्पना करें कि वह आपके साथ हर पल रहने का वादा कर रहै है.

6. अगर आपको कुछ खोने या हारने का डर लगता है, तो कल्पना करें कि ऐसा अगर हो भी जाता है, तो क्या आपका जीवन इसके बिना चल नहीं पाएगा?

7. आपको जब भी डर लगे, तो अभी तक का अपना सबसे बुरा दिन सोचें.

8. फिर खुद को कहें कि आपने जब वो बुरा दिन काट लिया था, तो आप जीवन में कुछ भी कर सकते हैं.

9. इससे आप जीवन के सत्य को जानते हुए डर को दूर कर पाएंगे, और कोई भी स्थिति आपको डरा नहीं पाएगी.

10. डर के ऊपर सफलता पाने के इस तरीके को "कल्पना चिकित्सा" कहते हैं.