मनुष्य क्रोध में एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं?

1. जब लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं, तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं.

2. इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाए नहीं सुन सकते.

3. वे जितना अधिक क्रोधित होंगे, उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और फिर उन्हें उतने ही जोर से चिल्लाना पड़ेगा.

4. जब लोग एक दूसरे को पसंद करते हैं, तब वे चिल्लाने के बजाय धीरे-धीरे बात करते हैं, क्योंकि उनके दिल एक दूसरे के करीब होते हैं जिससे उनके बीच की दूरी नाममात्र रह जाती है.

5. और जब वे एक दूसरे को बेहद पसंद करते हैं, तब वे बोलते भी नहीं बल्कि एक दूसरे की तरफ देखकर ही आपसी बात समझ जाते हैं.

बच्चों में पनपती ईर्ष्या की भावना को कैसे नियंत्रित करें?

1. जब बच्चा अपने सहपाठियों से शैक्षणिक, कौशल व खेल संबंधी ईर्ष्या करता है, तो वह अपने को दूसरे बच्चों से कमतर और अयोग्य आंकने लगता है.

2. ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों की योग्यता को पहचानें और उनका ध्यान उनकी व्यक्तिगत योग्यता व विशेषताओं की ओर आकर्षित करें और उनमे उन्हें पारंगत करें.

3. कभी-कभी ईर्ष्यालु बच्चा अपने ही भाई-बहन से ईर्ष्या करने लगता है, जिसके कारण एक स्वस्थ रिश्ता भी खराब हो सकता है, तो ऐसे में प्यार और धैर्य के साथ बड़े बच्चों को समझाएँ कि नए सदस्य के आने पर या छोटे भाई-बहनों के कारण उनके प्यार में कोई कमी नहीं आएगी.

4. जैसे-जैसे बच्चे किशोरावस्था में आते हैं, उनमे अपने दोस्तों को लेकर सामाजिक ईर्ष्या स्वतः पनपने लगती है जो बचपन में नहीं थी, जिसके कारण उनके आत्मविश्वास में कमी आने लगती है और वे अलग-थलग रहने लगते हैं, या कभी-कभी वे अन्य बच्चों के साथ आक्रमक व्यवहार भी करने लगते हैं.

5. ऐसे में उन्हें अकेला छोड़ने की बजाय, उन्हें अपनी बात अपने दोस्तों या परिवार के सदस्यों से साझा करने के लिए प्रेरित करें, या उन्हें एक डायरी में लिखने के लिए प्रोत्साहित करें, ताकि अभिभावक उनकी ईर्ष्या के सही कारण जान सकें और उससे निपटने के लिए मिलकर तरीके निकाल सकें.

6. आजकल बच्चे भौतिक ईर्ष्या से भी ग्रसित होते हैं, तो ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें समझाएं कि हर परिवार की आर्थिक स्थिति अलग-अलग होती है, इसलिए उनके पास जो है, उसी में खुश रहें.

7. बच्चों में ईर्ष्या की भावना दूर करने के लिए जरूरी है कि उनकी दोस्तों के साथ होनेवाली बातों को भी ध्यान से सुनें, जैसे वे किस बात से खुश हैं या किस बात से परेशान हैं, पर उनकी तुलना दूसरे बच्चों के साथ बार-बार न करें.

बच्चे की शिकायती आदत कैसे कम करें?

1. हर बच्चे की अपनी पसंद-नापसंद होती है, लेकिन जब वह बात-बात पर शिकायत करने लगे तो यह उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि उसके दोस्त उसे छोड़ देंगे और यह आदत भविष्य में भी बनी रह जाएगी.

2. ऐसे में जरूरी है कि आप उसकी बात को ठीक से सुनें, उससे आंखों का सम्पर्क बनाए रखें, बताएं कि आपने उसकी बात सुन ली है, और फिर समझाएं कि यह व्यवहार सही नहीं है.

3. हो सके तो उसकी इस आदत को और उसके बात करने के अंदाज को मोबाइल में रिकॉर्ड करें, उसे दिखाएं और समझाएं कि उसे अपनी बात मनवाने के तरीके में सुधार करना होगा.

4. यदि बच्चा किसी बात की बहुत ज्यादा शिकायत करता है, तो उसे उस समस्या को हल करना सिखाएं, जिससे वह भविष्य की विषम परिस्थितियों के लिए तैयार हो सके, और साथ ही यह भी समझे सके कि हर बात पर शिकायत करना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है.

5. बच्चे की हर शिकायत पर आपकी प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है, इसलिए आप उससे जितना प्यार से और बिना झुंझलाहट के अपनी बात कहेंगे, उतनी ही गहरा असर बच्चे पर पड़ेगा.

6. यदि बच्चा हर बात पर नकारात्मक हो रहा है, तो उसका नजरिया बदलना आपकी जिम्मेदारी है, इसलिए उसे उन चीजों के बारे में शिकायत करने की बजाय, जो उसके पास नहीं है, अपनी ही चीजों के प्रति कृतज्ञ और खुश रहना सिखाएं.

7. बच्चे की किसी भी आदत पर प्रतिक्रिया देने से पहले, खुद को टटोलना भी जरूरी है कि कहीं आपको भी शिकायत करने की आदत तो नहीं है, क्योंकि बच्चे अपने बड़ों की आदतों से ही सबसे ज्यादा सीखते हैं, इसलिए जरूरी है कि आप अपने व्यवहार में भी बदलाव लाएं.

नकारात्मक सोच को अपनी आदत न बनाएं

1. चूंकि जीवन में आपको हर तरह के अनुभव होते हैं, तो आपकी सोच भी कभी सकारात्मक होती है और कभी-कभी सब सही लगते हुए भी हम नकारात्मक सोचने लगते हैं.

2. यह भी मुमकिन नहीं है कि हम हर समय सिर्फ अच्छा ही सोचें, बस हमें इस बात का ध्यान रखना है कि नकारात्मक सोच हमारी आदत न बनने लगे.

3. जब भी आप नकारात्मक सोच से घिरे हों, तो यह सोचना शुरू कीजिए कि अगर ऐसे विचार आपके किसी प्रियजन को आए तो आप उसे क्या सलाह देते, क्योंकि यह आपको सकारात्मक सोच की ओर ले जाएगा और आपका ध्यान अच्छी चीजों पर केंद्रित होने लगेगा.

4. कसरत करना, कमरे में एक जगह से दूसरी जगह उठकर जाना, या उस कमरे से ही बाहर चले जाना भी प्रायः आपको नकारात्मक सोच से छुटकारा दिलाने का अच्छा जरिया है.

5. जीवन में खुद के साथ हुई अच्छी चीजों के लिए दूसरों का आभार व्यक्त करना भी आपको नकारात्मक सोच से दूर रखने में मदद करता है, इसलिए हमें अपनी आदत में धन्यवाद बोलना शामिल करना चाहिए.

6. किसी के कुछ अच्छा करने पर उसे लिखकर भेजें कि आपको कैसा महसूस हुआ और आप कितने खुश हैं, क्योंकि अपनी खुशी की भावनाओं को दबाए रखने से भी नकारात्मकता घेरने लगती है.

7. जब मन बार-बार नकारात्मक सोच से परेशान हो, तो जो मन में आ रहा है, उसे आने दें और अपनी भावनाओं को स्वीकार करें, लंबी सांसें लें और खुद को आराम दें, क्योंकि इससे आपको अच्छा महसूस होगा.

8. ऐसे लोगों से खुद को दूर करने के बारे में सोचें जो हमेशा नकारात्मक सोच और नजरिया रखते हैं, क्योंकि यह आदत किसी संक्रमण की तरह है जो तेजी से फैलती है.

क्या आप व्यापार में कदम रखना चाहते हैं?

1. उन नवीन विचारों की पहचान करें जो दूसरों से अलग हैं और जिन्हें स्थायी व्यावसायिक अवसरों में बदला जा सकता है.

2. अपने चुने हुए विचार के प्रति आपका दृष्टिकोण पूरी तरह से स्पष्ट होना चाहिए और पहले एक छोटे स्तर से शुरुआत करनी चाहिए.

3. इससे संबंधित गृहकार्य अच्छी तरह से करें और एक पथ खाका तैयार करें, जिसमें इसकी विशेषताएं, लाभ, मूल्य, बाजार की स्थिति, वित्त आदि शामिल हों.

4. पूंजी के लिए, आप बैंक, अपने दोस्तों और परिवार से ऋण ले सकते हैं, या अपनी बचत से भी शुरुआत कर सकते हैं.

5. अपनी टीम में बहुकुशल लोगों को शामिल करें जो खुद पर विश्वास करते हैं और निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं.

6. आपको स्वयं भी सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ अपने व्यावसायिक लक्ष्य के प्रति समर्पित रहना चाहिए.

प्रियजनों को आसान वित्तीय हस्तांतरण के लिए नुस्ख़े

1. सूची बनाएं

i) आपकी सभी मूर्त संपत्ति और अन्य मूल्यवान संपत्ति जो आप अपनी मृत्यु के बाद अपने प्रियजनों को हस्तांतरित करना चाहते हैं.

ii) आपके सभी बैंक खाते और अन्य वित्तीय निवेश, यहां तक ​​कि छोटी राशि भी.

iii) आपके सभी बकाया ऋण और खुले क्रेडिट कार्ड.

iv) आपकी सभी बीमा पॉलिसियां ​​जो आपने जीवन, स्वास्थ्य और ऋण का बीमा करने के लिए खरीदी हैं.

v) आपके सभी वित्तीय सलाहकार और बीमा एजेंट.

2. कॉलम बनाएं

उपरोक्त सूची में कुछ कॉलम बनाएं और उनके सभी आवश्यक विवरण लिखें.

3. एकत्र करें

उनके आवश्यक दस्तावेज एकत्र करें और उन्हें एक स्थान पर रखें.

4. मनोनीत करें

i) प्रत्येक वित्तीय संपत्ति के लिए अपने नामांकित व्यक्तियों को पंजीकृत और अद्यतन करें.

ii) उनको लिखने के लिए भी अपनी सूची में एक कॉलम बनाइए.

5. वसीयत बनाइए

i) प्रत्येक संपत्ति के लिए अपने लाभार्थियों की पहचान करें - मूर्त और वित्तीय.

ii) बाद के विवादों और परेशानियों को रोकने हेतु लाभार्थियों और नामांकित व्यक्तियों के बीच बेमेल होने से बचें.

iii) क़ानूनन, वसीयत के लाभार्थी नामांकित व्यक्तियों से सर्वोपरि होते हैं.

iv) सादे कागज पर भी वसीयत बनाई जा सकती है, जिसमें सभी संपत्तियों और निवेशों का विवरण, उनके लाभार्थियों और व्यक्तिगत अनुपात, और वसीयत के निष्पादक का उल्लेख होता है.

v) दो गवाहों की उपस्थिति में वसीयत के प्रत्येक पृष्ठ पर दिनांक और स्थान के साथ हस्ताक्षर करें.

vi) यदि आपको अपनी मृत्यु के बाद कोई विवाद की संभावना नहीं लगती है तो वसीयत को पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं है.

6. सुरक्षा

i) सभी दस्तावेजों और वसीयत को निष्पादक को ज्ञात सुरक्षित स्थान पर रखें.

ii) किसी भी बदलाव को शामिल करने के लिए समय-समय पर अपनी सूची और वसीयत की समीक्षा और अद्यतन करें.

ऑनलाइन आभासी बैठकों के बुनियादी शिष्टाचार

1. तुरंत लॉग इन करने के लिए दैनिक बैठक कार्यक्रम का पालन करें.

2. निर्धारित बैठक से कम से कम 15 मिनट पहले सभी संबंधित यंत्र, जैसे इंटरनेट संपर्क, लैपटॉप बैटरी, ब्लूटूथ संयोजकता, चार्जर, ईयरफोन आदि की जांच करें.

3. पृष्ठभूमि शोर, बैठक के दौरान अशांति, और बाद में यह गलत धारणा कि आप गंभीर नहीं हैं, से बचने के लिए म्यूट और अनम्यूट समायोजन का उपयोग करना सीखें.

4. अधिसूचना की आवाज को बंद रखें क्योंकि यह हर किसी का ध्यान भटकाता है.

5. इन बैठकों के लिए घर पर एक उपयुक्त स्थान निर्धारित करें और अपने बैठने की पृष्ठभूमि को साफ और बेदाग रखें.

6. हमेशा ऑफिस जाने वाले कपड़े चुनें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें.

7. हमेशा कैमरे के लेंस से आंखों का संपर्क बनाए रखें और बोलने के लिए अपना हाथ उठाएं.

8. बैठकों के दौरान अपने चेहरे या बालों को बार-बार न सहलाएं और कभी भी कुछ चबाएं नहीं.

9. मीटिंग के दौरान हमेशा सतर्क और चौकस रहें क्योंकि कैमरा सब कुछ पकड़ लेता है.

10. वर्चुअल ऑनलाइन मीटिंग के दौरान छोटी-छोटी त्रुटियां भी आपकी सावधानीपूर्वक बनाई गई कार्यालय की अच्छी छवि खराब कर सकती हैं.

बच्चों के संचार कौशल में सुधार के नुस्खे

1. उन्हें दूसरों की बात ध्यान से सुनने की शिक्षा दें.

2. उन्हें दूसरों की बात खत्म होने के बाद ही अपनी बात शुरू करना सिखाएं.

3. उन्हें समझाएं कि दूसरों से आंखों का संपर्क बनाए रखने से पूरा ध्यान उनकी बातों पर केंद्रित रहता है और मन इधर-उधर नहीं भटकता.

4. उन्हें समझाएं कि विनम्रता से अपनी बात कहने से दूसरों के मन में आपकी सकारात्मक छवि बनती है.

5. इससे दूसरे भी आपकी बातें गंभीरता से सुनते और ध्यान देते हैं, और मुश्किल से मुश्किल काम भी आसानी से बन जाते हैं.

6. उन्हें कम से कम शब्दों में तोलमोल कर अपने विचार कहने का कौशल सिखाएं.

7. उन्हें अच्छी किताबें पढ़ने के लिए दें और उनके बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित करें.

8. उनके सामने हमेशा अच्छे लहजे और सधे हुए शब्दों में बात करें.

9. उनके बातचीत के ढंग पर हमेशा ध्यान दें.

10. गलत लहजे या अभद्र शब्दों के प्रयोग पर उन्हें तुरन्त टोकें.

स्वस्थ शरीर, प्रसन्न मन

शरीर स्वस्थ रहेगा तो मन प्रसन्न होगा

1. आज की व्यस्त जिंदगी में हमारा शरीर ही सबसे ज्यादा उपेक्षित होता है, जिसके बल पर ही हम जीवन व्यतीत करते हैं और हर सुख का आनंद लेते हैं.

2. अच्छे स्वास्थ्य के लिए सबसे आवश्यक है नियमित आहार, व्यायाम या योग, सुबह की सैर, शारीरिक जांच, डॉक्टर के निर्देशों का पालन, व परहेज.

3. इसके अलावा अपने आप को हमेशा सकारात्मक सोच, ऊर्जा, इच्छाशक्ति, उत्साह व प्रसन्नता से भरपूर रखें, तभी शरीर पूर्ण स्वस्थ रहेगा.

4. जीवन को सर्वोपरि मानते हुए, किसी भी शारीरिक दर्द या तनाव को झेलते हुए सहनशीलता की मिसाल बनने की बजाय, अपनी समस्याओं का निदान व उपचार अपने डॉक्टर से करवाएं.

5. अपनी रुचि का काम करें, स्वयं को उचित महत्व दें, दूसरों से अनुचित अपेक्षाएं न रखें, और छोटी-छोटी चीजों में खुशियां खोजना सीखें.

सामूहिक चर्चा में सफलता

1. चर्चा के लिए औपचारिक पोशाक का चयन करें.

2. चर्चा के दौरान अपनी आवाज साफ व बुलंद रखें.

3. मॉडरेटर व अन्य प्रतिभागियों से आंखों का संपर्क बनाए रखें.

4. प्रतिभागियों को अपने दृष्टिकोण से सहमत होने के लिए बाध्य करने का प्रयास न करें.

5. अपने वविचार सामने वाले प्रतिभागी का दृष्टिकोण समाप्त होने के बाद ही दें.

6. चर्चा को सही रास्ते पर ही बनाए रखें.

7. यदि आपको किसी प्रतिभागी की बात समझ में नहीं आयी, तो आक्रमक होने की बजाय धैर्य से उन्हें दोबारा सुनें.

8. बहस के बीच तर्कपूर्ण बातों से अपनी नेतृत्व क्षमता को दर्शाएं.

9. शारीरिक भाषा से ऐसा लगना चाहिए कि आप चर्चा में बराबर के भागीदार हैं.

10. पूरी चर्चा में अपना आत्मविश्वास बनाए रखें.

पछतावों को पीछे छोड़ आगे बढ़ें

1. जिंदगी में कुछ गलतियां ऐसी होती हैं जिनसे कुछ लोग तो इसके पछतावे से खुद को उबार लेते हैं, पर कुछ लोग खुद को इतना उलझा लेते हैं कि चाहकर भी इससे उबर नहीं पाते.

2. पछतावों को अगर सही समय पर न छोड़ा जाए तो जिंदगी अपनी रफ्तार नहीं पकड़ पाती जिसके कारण अक्सर सही निर्णय लेने का आत्मविश्वास भी खो जाता है.

3. आपको अपने जीवन में जिन बातों का पछतावा है, उन सभी को एक जगह लिखें, उन परिस्थितियों पर फिर से विचार करें जब आपने वे निर्णय लिए थे, और अपने को समझाएं कि क्या वे समय की मांग थे या नहीं, और क्या आपका अभी भी पछतावा करना उपयुक्त भी है या नहीं.

4. यदि आपने किसी के साथ कुछ गलत किया है जिससे उसको नुकसान या तकलीफ पहुंची है, तो अपने पछतावे से उबरने के लिए उससे क्षमा मांगना एकमात्र विकल्प है, जिससे आपको निश्चित रूप से शांति मिलेगी.

5. अपने पछतावे से बाहर आने का सबसे कारगर नियम खुद को भी माफ करना है, अपने को यह दिलासा दे कर कि तब आप नादान थे और गलतियां किसी से भी हो सकती हैं.

6. यदि आप सकारात्मक होकर अपने गलत निर्णयों को जीवन की सीख समझकर आगे बढ़ेंगे, तो आपके पछतावे भविष्य में आपकी ताकत भी बन सकते हैं.

पहली छाप

 1. किसी पर अपनी पहली छाप छोड़ने में मात्र 30 सेकंड लगते हैं, क्योंकि आपके सामने वाला व्यक्ति इस अवधि के दौरान ही आपके बारे में अपनी राय बना लेता है.

2. किसी महत्वपूर्ण मुलाकात में आपकी पहली छाप प्रभावी हो, इसके लिए कुछ खास बातों का ख्याल रखना चाहिए.

3. यदि आप किसी व्यावसायिक मुलकात के लिए जा रहे हैं, तो एक गहरी सांस लें, अपने द्वारा तैयार की गई हर प्रेरक बातों को याद करें और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें.

4. उन लोगों का पूरा नाम याद रखें जिनसे आप मिलने जा रहे हैं और उन्हें उनके नाम से संबोधित करें, जो एक बेहतर संदेश भेजता है और आगे की बातचीत के लिए अच्छी लय निर्धारित होती है।

5. इसके अलावा आपका पहनावा भी ऐसा होना चाहिए कि वह पहले 3 सेकंड में उपस्थित लोगों को प्रभावित करे, ताकि बाकी बातचीत के दौरान वे आपकी अन्य क्षमताओं पर भी ध्यान दें.

असफलता में भी अपने को कैसे प्रेरित रखें?

1. जब आप स्तिथियों पर स्वयं नियंत्रण किए हुए हैं और उन्हें प्रभावित कर सकते हैं, तो आपमे आत्मविश्वास आता है और आप तनाव व दबाव को अपने आप कम महसूस करते हैं.

2. पर जब स्तिथियाँ ऐसी हों कि आपके करने के लिए कुछ भी न हो और परिस्थितियां आपके जीवन को निर्धारित करने लगती हैं, तब तनाव ज्यादा महसूस होता है और निराशा हावी होने लगती है.

3. जब आप कोई निर्णय लेते हैं तो आपमे आत्मविश्वास की वृद्धि होती है और आप कुछ करने के लिए प्रेरित होते हैं, इसलिए खुद को पहचानने और अपना आत्मविश्वास बनाए रखने के लिए अपने जीवन से जुड़े छोटे-छोटे निर्णय लेते रहें, भले ही इसका आपकी निराशा से सीधा सम्बन्ध हो या न हो, क्योंकि यह आपके व्यक्तित्व में सकारात्मक बदलाव जरूर लाएगा.

4. यदि आप किसी वजह से असफल हुए हैं, तो खुद को यह बताएं कि भले ही आपसे कोई कसर रह गई होगी, लेकिन आपको एक अनुभव मिला और पता चला कि कैसी तैयारी की जानी थी, क्योंकि इससे आपकी निराशा कम होगी.

5. हमेशा प्रेरित रहने के लिए जरूरी है कि चीजों के प्रति तटस्थ दृष्टिकोण अपना कर खुद को दोष देना बंद करें और देखने की कोशिश करें कि आपकी कमी के अतिरिक्त भी और क्या चीजें हैं जिनकी वजह से आप असफल हुए.

6. यह आपको राहत देगा और आप अपनी कमी को भी बिना किसी परेशानी के दुरुस्त कर पाएंगे.

सबसे बड़ी गलती

1. कई बार हम सही जानकारी के अभाव में बड़ी गलती कर देते हैं, और हमें इसका एहसास काफी समय निकल जाने के बाद दूसरों से होता है.

2. हालांकि गलती करना भी सीखने की एक प्रक्रिया होती है, समझदारी इस बात में होती है कि उस गलती को कितनी जल्दी सुधार लिया जाय.

3. यदि आप सही जानकारी पाने के बाद भी अपनी गलती नहीं सुधारते हैं, तो यह आपकी सबसे बड़ी गलती है.

4. यही गलती तब आपकी असफलता का सबसे बड़ा कारण बन सकती है.

आधुनिक पालन-पोषण के कई पहलू

1. पालन-पोषण का मतलब बच्चे को जन्म देकर उसकी देखभाल करना ही नहीं होता, बल्कि समाज में उसे एक जिम्मेदार नागरिक भी बनाना होता है, क्योंकि अच्छी परवरिश ही एक अच्छे समाज के निर्माण में सबसे बड़ा योगदान है.

2. आप जो अपने बच्चों को सिखाएंगे और जैसा उनके साथ बर्ताव करेंगे, वे उन्हें जीवन भर याद रहेंगी और बड़े होने पर उनके व्यक्तित्व में भी झलकेगी.

3. बचपन का अनुभव जीवन भर इंसान के आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता को बढ़ाता या घटाता है, जिसकी कुछ वजहें खुद माता-पिता की गलतियां भी होती हैं, इसलिए पालन-पोषण के दौरान अपनी कुछ आदतों को भी बदलने की जरूरत होती है.

4. बच्चों के विकास में माता-पिता का प्रोत्साहन बहुत मायने रखता है, इसलिए उनकी किसी भी मेहनत का मजाक न बनाएं और हर काम में कमियां न निकालें, जिससे अगली बार वे और ज्यादा व बेहतर प्रयास कर सकें.

5. चूंकि बच्चों की अपनी-अपनी आदतें होती हैं, इसलिए उनकी एक दूसरे से तुलना करने से बचें, क्योंकि ऐसा करने से उनमे आपसी चिढ़ व जलन जैसी भावना पनप सकती हैं.

6. बाहरी लोगों के सामने अपने बच्चों की शिकायत कभी न करें, क्योंकि इसका बच्चों के मन पर बहुत ही गहरा और लंबा प्रभाव पड़ता है, जिसका बाद में उनके आत्मविश्वास पर भी असर पड़ता है.

7. यदि बच्चों को हर गलती पर पीटा जाता है तो उनके मन में यह बात घर कर जाती है कि वे अच्छे नहीं हैं और कोई उन्हें पसंद नहीं करता, जिसकी वजह से उनके अंदर असुरक्षा की भावना घर कर जाती है जो बड़े होने पर उनके व्यक्तित्व में झलकती है.

भावनात्मक रूप से भी परिपक्व बनें

1. यदि किसी का दृष्टिकोण हमसे अलग है, और इस बात पर हम खीज उठते हैं, तो यह हमारी भावनात्मक अपरिपक्वता दर्शाता है.

2. कुछ लोग, जो जरा-जरा सी बात को बेहद भावुक होने का तर्क देकर अपनी प्रतिष्ठा, सम्मान या लिंगबोध से जोड़ लेते हैं, वास्तव में अपरिपक्व होते हैं और दूसरे लोग धीरे-धीरे उनसे कन्नी काटने लगते हैं.

3. जब हम ऐसे लोगों की पीठ पीछे बुराई या हानि करते रहते हैं जिन्हें हम पसंद नहीं करते, तो यह भी हमारी घोर भावनात्मक अपरिपक्वता का नतीजा होता है.

4. जीवन की हर भावना का महत्व है, जैसे नाराज होना, उदास होना, खुश होना, रोमांचित होना आदि, जिनका सही इस्तेमाल जरूरी है अपनी भावनात्मक परिपक्वता दर्शाने के लिए.

5. एक खुशनुमा, प्यारभरी और सफल जिंदगी के लिए दिल और दिमाग दोनों का तालमेल होना चाहिए, बिना दोनों के गुलाम बने, क्योंकि हम इंसान हैं, रोबोट नहीं.