हमेशा सोच-समझ कर बोलें

1. जो मन में आए, वही बोलने से बाद में आदमी को वह सुनना पड़ता है जो उसे पसंद नहीं होता.
2. बोलने और व्यवहार करने में चतुर बनें, यानी हम कुछ कहते वक्त अपने शब्दों का चुनाव होशियारी और समझदारी से करें.
3. हम अपने कटु वचन कभी वापस नहीं ले सकते और उससे हुए नुकसान की भरपाई भी संभव नहीं है.
4. आलोचना का मतलब नकारात्मक बातें करना और शिकायत करना ही नहीं होता, बल्कि आलोचना सकारात्मक भी हो सकती है.
5. आपकी कोशिश यह होनी चाहिए कि आपकी आलोचना से आपके द्वारा सुझाए विचारों से उसकी सहायता हो जाए.