1. बच्चों को बचपन से पैसे जोड़ने की आदत डालने के लिए उन्हें एक छोटा गुल्लक यानी पिग्गी बैंक दें.
2. वे जब भी किसी चीज़ को लेने की ज़िद्द करें, तो उनको कहें कि वे इस गुल्लक में पैसे जोड़कर रखें और खुद के पैसों से वह चीज़ लें.
3. ऐसा करने से बच्चों को बचत का मतलब समझ आ जाएगा, और वे ज़रूरत वाली चीजें ही खरीदेंगे.
4. बच्चों की किसी फ़िज़ूलख़र्ची से तंग आकर उनपर गुस्सा होने की बजाय उनको प्यार से इस आदत के नुकसान को समझाएं, क्योंकि ऐसा सिखाने पर वे फिजूलखर्च और समय को बर्बाद करने दोनों से बच जाएंगे.
5. बच्चों की हर छोटी से बड़ी बात को मानकर पूरा न करें, क्योंकि इससे वे धीरे-धीरे ज़िद्दी होने के साथ ही फ़िज़ूलख़र्ची करने लगते हैं.
6. बच्चों को हमेशा एक निश्चित राशि ही दें और कभी भी ज़रूरत से ज़्यादा पैसे न दें, क्योंकि अधिक रकम मिलने से वे उसके महत्व को नहीं समझ पाते.
7. पैसे देते समय उन्हें यह भी बताएं कि इन्ही से उन्हें एक निश्चित समय तक खर्च करना है और बचत भी करनी है, और आप यह भी देखेंगे कि वे एक हफ्ते और एक महीने में कितनी बचत कर रहे हैं.
8. जब बच्चों को सब कुछ बहुत आसानी से मिल जाता है, तो वे उसके महत्व को नहीं समझ पाते, और उन्हें उसकी असली कीमत तभी समझ में आती है जब वे उस चीज़ के लिए मेहनत करते हैं.
2. वे जब भी किसी चीज़ को लेने की ज़िद्द करें, तो उनको कहें कि वे इस गुल्लक में पैसे जोड़कर रखें और खुद के पैसों से वह चीज़ लें.
3. ऐसा करने से बच्चों को बचत का मतलब समझ आ जाएगा, और वे ज़रूरत वाली चीजें ही खरीदेंगे.
4. बच्चों की किसी फ़िज़ूलख़र्ची से तंग आकर उनपर गुस्सा होने की बजाय उनको प्यार से इस आदत के नुकसान को समझाएं, क्योंकि ऐसा सिखाने पर वे फिजूलखर्च और समय को बर्बाद करने दोनों से बच जाएंगे.
5. बच्चों की हर छोटी से बड़ी बात को मानकर पूरा न करें, क्योंकि इससे वे धीरे-धीरे ज़िद्दी होने के साथ ही फ़िज़ूलख़र्ची करने लगते हैं.
6. बच्चों को हमेशा एक निश्चित राशि ही दें और कभी भी ज़रूरत से ज़्यादा पैसे न दें, क्योंकि अधिक रकम मिलने से वे उसके महत्व को नहीं समझ पाते.
7. पैसे देते समय उन्हें यह भी बताएं कि इन्ही से उन्हें एक निश्चित समय तक खर्च करना है और बचत भी करनी है, और आप यह भी देखेंगे कि वे एक हफ्ते और एक महीने में कितनी बचत कर रहे हैं.
8. जब बच्चों को सब कुछ बहुत आसानी से मिल जाता है, तो वे उसके महत्व को नहीं समझ पाते, और उन्हें उसकी असली कीमत तभी समझ में आती है जब वे उस चीज़ के लिए मेहनत करते हैं.