दोस्ती को टिकाऊ बनाने और निभाने के गुर

1. दोस्ती में कोई नियम-कायदा नहीं होता - यह सभी मानकों के परे होती है.
2. दोस्ती में कभी धन का लेनदेन न आने दें, क्योंकि तगड़ी से तगड़ी दोस्ती भी इसके चक्कर में पिस जाती है.
3. दोस्त के पीठ पीछे उतनी ही बात करें जितनी उसके सामने स्वीकारने में हिचक न हो, क्योंकि कई लोग आपको एक दूसरे के विरुद्ध बहकाने की कोशिश कर सकते हैं.
4. अगर मित्र के प्रति आपके दिल-दिमाग में कोई वहम आये, तो उसे मित्र से बात कर साफ कर लें, वर्ना मौके-बेमौके वह गुबार दिल से निकल कर जुबान पर आ जाता है जिससे दोस्ती में दरार पड़ते देर नही लगती.
5. किसी उलझन में फंसे दोस्त को सटीक राय दीजिये, भले ही उस समय उसे वह कड़वी ही क्यों न लगे, क्योंकि कई बार दोस्त का मन रखने के लिए दी गई उसकी पसंदीदा सलाह बाद में उसे परेशानी में डाल सकती है.
6. दोस्ती में अपने अहं को आड़े न आने दें, क्योंकि अच्छे दोस्त अपने साथी की खुशी को दुगुना और तकलीफ को आधा कर देते हैं.
7. यदि दोस्त अपनी तकलीफ को मानसिक सुकून पाने के लिए आपसे साझा करते हैं, तो उन्हें निराश न करें और प्रेम और धैर्य के साथ सुन लें, भले ही आपके पास उसकी समस्या का निदान न हो.
8. यदि कोई दोस्त अपनी हालात से मजबूर होकर रोज़ाना मेल-मुलाक़ात नहीं कर पाते या अधिक समय नहीं दे पाते, तो उनकी व्यस्तता को समझ कर उन्हें कोसने और शिकायत करने की बजाय वस्तुस्थिति को समझने का प्रयास करें.
9. दोस्ती में सहज भाव से अपनी बात रखें, क्योंकि एक सच्ची दोस्ती में अहंकार, फरेब, कटाक्ष और टीका-टिप्पणी के बजाय सहजता और सरलता होना आवश्यक है.
10. दोस्ती की आजमाइश की कोशिश कभी न करें, क्योंकि यह अति होशियारी का प्रतीक है जिससे न सिर्फ दोस्ती का स्तर गिरता है बल्कि उसका मौलिक स्वरूप भी आहत हो जाता है.
11. दोस्ती में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता, क्योंकि दोस्ती न तो उम्र देखकर की जाती है, न ही रंग-रूप या सामाजिक स्तर देखकर, इसलिए सिर्फ दोस्त बनाने की जुगत न करें बल्कि सच्ची दोस्ती निभाएं.