1. हमारे-आपके आसपास कई ऐसे बेटे-बेटियां हैं जिनके बुज़ुर्ग माता-पिता अपने सनकीपन और स्वार्थीपन के आगे बच्चों की इच्छाओं को अनदेखा कर रहे हैं.
2. बात-बात पर चिड़चिड़ाना, छोटी-छोटी शारीरिक समस्याओं को बड़ा बनाकर घर में तमाशाआ बना देना, खाने-पीने और कहीं भी आने-जाने में अपनी ज़िद मनवाना आदि इनके स्वभाव में शामिल है.
3. अपनी बीमारियों को बढ़ा-चढ़ा कर बताने के पीछे बुज़ुर्गों का एक मनोविज्ञान काम करता है.
4. वे पड़ोसियों और रिश्तेदारों के सामने अपनी बीमारी के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं ताकि वे अधिक से अधिक सहानुभूति बटोर सकें और उनके बच्चे उनपर अधिक ध्यान दें.
5. वे बच्चों के उनके प्रति भावनात्मक जुड़ाव को लेकर उन्हें भयादोहन करते हैं, और उन्हें बच्चों की भावना से कोई लेना-देना नहीं होता.
6. अगर बुज़ुर्गों को सचमुच अपने बच्चों से लगाव है, तो उन्हें चाहिए कि वे बच्चों की इच्छाओं और परेशानियों को समझें और उनको बीमार न बनाएं.
2. बात-बात पर चिड़चिड़ाना, छोटी-छोटी शारीरिक समस्याओं को बड़ा बनाकर घर में तमाशाआ बना देना, खाने-पीने और कहीं भी आने-जाने में अपनी ज़िद मनवाना आदि इनके स्वभाव में शामिल है.
3. अपनी बीमारियों को बढ़ा-चढ़ा कर बताने के पीछे बुज़ुर्गों का एक मनोविज्ञान काम करता है.
4. वे पड़ोसियों और रिश्तेदारों के सामने अपनी बीमारी के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं ताकि वे अधिक से अधिक सहानुभूति बटोर सकें और उनके बच्चे उनपर अधिक ध्यान दें.
5. वे बच्चों के उनके प्रति भावनात्मक जुड़ाव को लेकर उन्हें भयादोहन करते हैं, और उन्हें बच्चों की भावना से कोई लेना-देना नहीं होता.
6. अगर बुज़ुर्गों को सचमुच अपने बच्चों से लगाव है, तो उन्हें चाहिए कि वे बच्चों की इच्छाओं और परेशानियों को समझें और उनको बीमार न बनाएं.