सपनों से बाहर निकलें

1. यह तथ्य है कि जब कोई व्यक्ति मधुर सपना देखता है, तब वह किसी के भी उपदेशों को नहीं सुनना चाहता, क्योंकि उसका सपना अपने पूर्ण सुख के करीब पहुचाने वाला रहता है.
2. लेकिन यह याद रहे कि सपना तो सपना है, चाहे सुखद हो या दुखद, जिसका आंखें खुलने के बाद कोई मूल्य नहीं होता.
3. उसी प्रकार हम भौतिक जीवन की सुख-सुविधाओं के जुगाड़ के सपने में खोये रहते हैं, और अपनी आत्मा की वास्तविक सुख-शांति से आंखें मूंदे रहते हैं.
4. किंतु जब किसी वजह से सपना टूटता है, तब पता चलता है कि वह तो झूठ था और महज़ एक सपना ही था.
5. सत्य ही शाश्वत है और भ्रमवश हम उससे आंखें मूंदे रहते हैं, इसलिए अब भी वक़्त है कि हम अपने सपनों से बाहर निकलें.