1. मृतुपरांत नेत्रदान करने के लिए कोई भी जीवित व्यक्ति संकल्प ले सकता है, और इसके लिए वह विभिन्न नेत्ररोपण के लिए अधीकृत किए गए अस्पतालों में या सरकारी अस्पताल में जाकर इसके संदर्भ में दिया जाने वाला फॉर्म भरकर यह संकल्प और पंजीयन कर सकता है.
2. नेत्रदान का संकल्प करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके नेत्र निकाल कर किसी नेत्रहीन व्यक्ति में प्रत्यारोपित किए जा सकते हैं, जिससे वह नेत्रहीन व्यक्ति दुनिया देख सकता है, और मृत व्यक्ति फिर से किसी दूसरे के शरीर से यह दुनिया देख सकता है.
3. अगर किसी व्यक्ति ने नेत्रदान का संकल्प नहीं भी लिया हो और उसकी मृत्यु हो गयी, तो मृतुपरांत उसके परिजन भी नेत्रदान करा सकते हैं, जिसके लिए फौरन ही किसी सरकारी अस्पताल या नेत्ररोपण के लिए अधीकृत किए गए अस्पताल को सूचना देनी होगी.
4. किसी भी व्यक्ति के मृत्यु पश्चात 6 घंटों के भीतर नेत्र निकाले जा सकते हैं, इसलिए जल्द से जल्द किसी आईबैंक को सूचित करें, आंखें जल्द बंद कर दें, पंखा न चलाएं, बंद आंखें गीले कपड़े से ढंक दें, और उपलब्धता हो तो एंटीबायोटिक आईड्रॉप का भी इस्तेमाल करें.
5. नेत्रदान करने से पहले परिजनों की उचित लिखित सहमति लेना ज़रूरी होता है, और नेत्रदान की प्रक्रिया को पंजीकृत स्वास्थ्य अधिकारी से कराना ज़रूरी होता है.
6. नेत्रदान करने की पूरी प्रक्रिया में कुछ कानूनी तौर पर पाबंदियां हैं, जैसे पूरी प्रक्रिया में किसी भी आर्थिक लाभ का उद्देश्य न हो, यह पूरी तरह से सामाजिक भूमिका से किया जाए, नेत्रदान करने वाले डाटा की पहचान को गुप्त रखना होता है, नेत्र जिस व्यक्ति को प्राप्त हो रही है उसके परिजनों को भी नेटरदाता की पहचान नहीं बताई जाती है, और नेत्रदान में किसी भी प्रकार की जाती, धर्म, पंथ तथा राष्ट्रीयता का भेद भी नहीं रखा जाता है.
7. नेत्रदान की शाल्य क्रिया काफी सरल और सटीक होती है जिसमे मात्र 20 मिनट लगते हैं, और जिससे मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए भी कोई विलंब नहीं होता, और न ही चेहरे पर उसका असर दिखता है.
8. नेत्रदान पर इन बातों का कोई असर नहीं होता जैसे मृत व्यक्ति की आंखों पर पहले कोई शल्यक्रिया हुई हो, उसकी आंखें पहले से ही कमजोर हों, वह चश्मा का इस्तेमाल करता हो, डायबिटीज या ब्लड प्रेशर से ग्रसित हो, या ज्यादा उम्र का हो.
9. लेकिन नेत्रदान के लिए कुछ लोग उचित नहीं होते जैसे मृत व्यक्ति में कोई संक्रमणकारी रोग हो, कैंसर का मरीज हो, वायरल हेपेटाइटिस हो, एक्टिव वायरल इन्सेफेलाइटिस हो, या रेबीज का मरीज हो.
10. आईबैंक में किसी भी मृत व्यक्ति के नेत्र पहुंचने पर उसकी उचित जांच की जाती है, तत्पश्चात जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी उन्हें ज़रूरतमंद व्यक्ति में प्रत्यारोपित करने के लिए प्रक्रिया की जाती है, जिसके लिए जिन लोगों को नेत्रों की आवश्यकता होती है, उनका वहां पहले से पंजीयन होता है, और उसकी प्रतीक्षा सूची के हिसाब से ही मरीज के साथ संपर्क किया जाता है और इत्रदान की प्रक्रिया को पूरा किआ जाता है.
11. दान किए गए नेत्रे कभी भी बेचे या खरीदे नहीं जा सकते, और अगर ऐसा सामने आया तो फौरन कड़ी कानूनी कार्यवाही की जा सकती है.
12. नेत्रदान एक राष्ट्रीय कार्य है, इसलिए इस काम में हम एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक के तौर पर आगे आना जरूरी है.